अभावों में रंगकर्मी मर रहे हैं कल हिन्दी रंगमंच भी मर जायेगा ! रंगकर्मी आनंद प्रह्लाद के परिजनों को आर्थिक सहयोग दे सरकार , हिन्दी रंगमंच के स्ट्रगल की तस्वीर थे रंगकर्मी आनंद

सेवा में 
माननीय महेश शर्मा जी
संस्कृति मंत्री, भारत सरकार 
अभावों में रंगकर्मी मर रहे हैं कल हिन्दी रंगमंच भी मर जायेगा ! रंगकर्मी आनंद प्रह्लाद के परिजनों को आर्थिक सहयोग दे सरकार , हिन्दी रंगमंच के स्ट्रगल की तस्वीर थे रंगकर्मी आनंद 
30 जुलाई लखनऊ :- हुज़ूर, हमारा एक संस्कृतिकर्मी साथी मर गया। उसके पास खाने को रोटी नहीं थी। इलाज का पैसा नहीं था। ये गरीब राष्ट्रवादी था। देश की संस्कृति को बचाने की कोशिश में खुद नहीं बच सका। संस्कृति की रक्षा करता था लेकिन उसकी जान की रक्षा किसी ने नहीं की। आनंद प्रह्लाद बीस वर्षों से सिसकते भारतीय रंगमंच को बचाने के लिए अपने खून-पसीने का आक्सीजन दे रहा था। लेकिन जब वो लखनऊ के सरकारी केजीएमसी में सिसक रहा था तो उसको ना ढंग से दवा- इलाज मिला, ना आक्सीजन और ना वैन्टीलेटर। वो अपने पैसे में बेहतर इलाज करवा सकता था, लेकिन उसकी नाट्य संस्था की रकम सरकारी फाइलों में उलझी थी। उसका ही पैसा उसे नहीं मिला और बेहतर इलाज के अभाव में सरकारी अस्पताल में एड़ियों रगड़ते हुए मर गया। कई और आनंद ऐसी मौत मरने के खतरों से जूझ रहे हैं। सौ से ज्यादा गरीब संस्कृति कर्मियों का पैसा सरकारी फाइलों में फंसा है। अब तो कुछ करिये हुजूर! बहुत दिनों से कैंसर पेशेंट आनंद का पैसा आपके मंत्रालय की सरकारी फाइलों में फंसा था। पैसे की कमी में वो अपना इलाज नहीं कर पा रहा था। इस बात की दुहाई देते हुए आपको ई मेल किया गया था। लेकिन आपने ईमेल का जवाब नहीं दिया। आज आनंद मर गया। राष्ट्रवादी आनंद में देशहित की भावना कूट-कूट कर भरी थी। इसलिए उसने देहदान की वसीयत की थी। हो सकता है उसे ये भी फिक्र हो कि क्रियाकरम कैसे होगा? पैसा तो हैं नहीं। इसलिए आनंद की दूरदर्शिता से गरीब परिवार और गरीब रंगकर्मियों को आनंद की चिता में अग्नि देने के लिए चंदा इकट्ठा करने की जरूरत नहीं पड़ी। आनंद की एक और वसीयत थी- मेरी मौत पर रोना नहीं। हंसते-मुस्कुराते, तालियां बजाते मुझे रुखसत करना। हम लोगो ने लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में उसे आखिरी सैल्यूट किया। बाडी केजीएमसी के सुपुर्द कर दी। बहरहाल अब कोई और आनंद ऐसी मौत ना मरे और जिनका सहारा छिन गया उस आनंद के परिजनों को आनंद का पैसा मिल जाये। इसलिए भेजे जा चुके ईमेल पर गौर फरमा लें हुज़ूर ! 
स्ट्रगल.. स्ट्रगल.... स्ट्रगल.. और सिर्फ स्ट्रगल। फिर अभावों में मौत। ऐसे में भारतीय संस्कृति और भारतीय कलाओं को जिन्दा रखने के लिये कब तक मरते रहेंगे कलाकार। धनाभाव की दलदल में अपने परिवार को छोड़ गये लखनऊ के कर्मठ रंगकर्मी आनंद प्रह्लाद । मुफलिसी के बीच रंगकर्म की कांटों भरी डोर पकड़े - पकड़े जीवन की डोर छोड़ गया एक और रंगकर्मी। ये जज्बा किसमें और कब तक जारी रहेगा। हो सकता हैं इस डर से थम जाये ये जज्बा। और फिर हिन्दी रंगकर्म की मौत तय। रंगकर्म को जिन्दा रखना है तो रंगकर्मी को जिन्दा भी रखना होगा। आप देश की संस्कृति और देश की सिसकती कलाओं को जिन्दा रखने का जज्बा रखते हैं तो देश की सरकारों का भी फर्ज बनता है कि देश की कलाओं को जिन्दा रखने वालों को भी जिन्दा रहने में मदद करें। रंगमंच और रंगकर्मियों के लिए समय-समय की सरकारें कितना योगदान देती हैं आप सब जानते है। मित्र आनंद के चले जाने की खबर अभी-अभी मिली है। रंगकर्म के प्रति सरकारों के रवैये पर बहुत कुछ लिखने की स्थिति मे नहीं हूं। 
फिलहाल मेरा आग्रह है कि कलाकारों के अन्य संगठन साथी आनंद प्रह्लाद के परिजनों को आर्थिक सहयोग दिलवाने का निवेदन करे। 
आशा है न्याय प्रिय मुख्यमंत्री माननीय आदित्य नाथ योगी जी गरीब रंगकर्मी आनंद प्रह्लाद के परिजनों को आर्थिक सहयोग देकर हम सब रंगकर्मियों के आंसू पूछने का काम अवश्य करेंगे। निवेदक 
दबीर सिददीकी सचिव 
थिएटर एवं फिल्म वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश

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